घासी – लाल कैंपस का भगवाधारी – एक जीवित किताब

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घासी - लाल कैंपस का भगवाधारी

एक लेखक अपने बिचारों को जब कोरे कागज पर लिखना शुरु करता हैं तो उस कोरे कागज की कीमत बहुत बढ़ जाती है। कोरे कागज कुछ ही दिनों में शब्दों से भर जाते हैं और लेखक की एक किताब का जन्म होता है। समाज में लेखक ही ऐसा व्यक्ति है जिसकी नजर हर व्यक्ति को देखने और समझने के लिए अलग होती है।

एक लेखक अपने साथ करोड़ो शब्दों का संग्रह अपने दिमाग में ले कर चलता रहता है। दुनिया को देखने और समझने का एक अलग नजरिया सिर्फ और सिर्फ एक लेखक ही रख सकता है।

लेखक की कलम हमेशा हर तरह के समाज को एक आईना दिखाती है, लोगों का मार्गदर्शन भी करती है। जीवन का अनुभव प्रदान करती है लेखक की कलम। आज हम इस लेखन में आप सभी का एक ऐसे लेखक से परिचय करवाने वाले हैं जिन्होंने अपनी कलम से एक कुछ ऐसे किरदारों को बुना जो उनके आस पास के लोग थे।

आज हम बात कर रहे हैं zee news में कार्यरत लेखक ललित फुलारा जी की। अभी हाल ही में ललित फुलारा जी की पहली पुस्तक पब्लिश हुई है। अपनी पुस्तक को लेकर ललित फुलारा जी बहुत खुश हैं और हमें कुछ विशेष जानकारी उनके बारे में पता हुई, की कैसे ललित फुलारा जी की पहली पुस्तक “घासी – लाल कैंपस का भगवाधारी” कैसे पब्लिश हुई।

लेखक ललित फुलारा जी
लेखक ललित फुलारा जी
# Preview Product Price
1 Ghasi Lal Campus Ka Bhagwadhari Ghasi Lal Campus Ka Bhagwadhari ₹ 170

बात है मार्च 2020 की जब भारत देश में कोरोना नाम का वायरस आया और उस समय ऐसी आपात स्थति उत्पन्न हुई जिसकी बजह से पूरा देश बंद कर दिया गया यानी पुरे देश को लॉक डाउन कर दिया गया। ऐसे में लोगों को मजबूरी बस अपने घरों में रहना पढ़ा।

ललित फुलारा जी बताते हैं की उनको अपनी किताब लिखनी थी यह बात कई सालों से सोच रहे थे लेकिन समय का आभाव था लेकिन जब लॉक डाउन देश में लगाया गया और उस दौरान उन्होंने अपनी मनोस्तिथि को समझते हुए अपनी कलम से शब्दों को कागजों पर कुरेदना आखिर शुरु किया और कुछ समय लगा लेकिन अपने दिमाग में सालों से कैद उन सभी भूमिकाओं को एक किताब में उतार दिया और उस किताब को नाम दिया “घासी – लाल कैंपस का भगवाधारी

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हमारी टीम ने इस किताब को पढ़ा और सभी की जुवान पर सिर्फ एक बात थी की लेखक ललित फुलारा ने अपने दिल की तलहटी में कैसे कई सालों तक ऐसे किरदारों को छुपा कर रखा। सभी को घासी – लाल कैंपस का भगवाधारी पुस्तक बहुत ही ज्यादा पसंद आयी है।

कैंपस, युवा, प्रेम और पॉलिटिक्स के ईर्द-गिर्द बुना गया एक शानदार उपन्यास है ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी‘ 

  • उपन्यास- ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’
  • लेखक- ललित फुलारा
  • प्रकाशक- यश पब्लिकेशंस
  • मूल्य- 199 रुपये
  • पृष्ठ संख्या- 127

‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’ एक ऐसा उपन्यास है, जिसे हाथ में उठाने के बाद आप बिना खत्म किये छोड़ नहीं सकते. लेखक ने यूथ और कैंपस बेस्ड इस नॉवेल को सदी हुई भाषा में कसा है और तारतम्यता को इस तरह से बरकरार रखा है कि मानों उपन्यास न हो कर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई वेब सीरीज चल रही हो…! इस नॉवेल की शुरुआत ‘दिल की बात’ से होती है, जो वाकई में आपके दिल में उतर जाती है. धीरे-धीरे हास्य और गुदगुदाने वाले अंदाज में घासी उभरकर सामने आता है और उसके किस्से ठहाके लगाने पर मजबूर कर देते हैं.

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पुस्तक के जिस भी पन्ने में घासी आता है आप बिना मुस्कुराये नहीं रह सकते. टिल्लू की प्रेम कहानी में कई बार दिल धुकधुकाता था तो कई बार लगता था कि टिल्लू के साथ गलत हुआ. नव्या के प्रति सहानुभूति भी होती थी और यह सस्पेंस भी बरकरार रहता था कि आगे क्या हुआ होगा? उपन्यास में मौजूद प्रेम कहानी कभी भावुक करती थी तो कभी अचानक से गुस्सा दिला देती थी.

हर किस्से के शुरू होने के बाद मन में यह बैचेनी बनी ही रहती थी कि अब क्या होगा? नॉवेल में जिस तरह से क्लास में होने वाली राजनीतिक डिबेट का जिक्र किया है वह आपके सामने कैंपस की अपनी यादों को ताजा कर देगा. लेखक ने व्यंग्य की शैली के जरिए छात्रों के बीच होने वाले राजनीतिक संवाद को दर्शाया है. कभी किसी मुद्दे पर छात्र आक्रोशित होते हैं तो किसी मुद्दे पर चुटकी लेते हैं. ऐसा ही आम आदमी पार्टी के गठन को लेकर छात्रों के बीच क्लास में होने वाले संवाद अपने आप में ऐतिहासिक है जिसमें घासी कहता है कि हर चेले को केजरीवाल की तरह ही होना चाहिए.

कोरोना काल की परिस्थियां भी मार्मिकता के साथ उपन्यास में उभरी हैं. जिन्हें पढ़ते ही आप लॉकडाउन के उस दौर में जा पहुंचते हैं. इस उपन्यास का हर एक किरदार चाहे वह घासी हो, दद्दा हो, सुमित्रा हो या फिर मासूम मिश्रा व इनसाइक्लोपीडिया आपको सीधे कैंपस की दुनिया में ले जाएगा और आपको लगेगा कि कैंपस सिर्फ चार दिवारें नहीं होती हैं बल्कि उसके भीतर और बाहर कई ऐसी घटनाएं घटती हैं जो हमेशा के लिए आपके मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप इस नॉवेल को पढ़ रहे हों और आपकी स्मृतियों में अपने दोस्त और कैंपस ताजा न हो जाये.

कह सकते हैं कि यह उपन्यास अल्हड़ और युवा उम्र के छिछोरेपन और जीवन संघर्ष का एक अद्भुत नॉवेल है जो पात्रों की सामाजिक पृष्ठभूमि,समय काल,ज्ञान-अज्ञान को प्रतिबिंबित करता है. यह उन युवाओं का उपन्यास है जो सूदूर गांवों- कस्बों से जीवन को एक धार देने के लिए चले आते हैं और बहुत सारे काल्पनिक सपनों के साथ रूमानियत के संसार में विचरते हुए जब यथार्थ के धरातल में आकर अपनी क्षमताओं को परखते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, जिसे लेखक ईमानदारी के साथ बताने में सक्षम हुए हैं.

घासी एक प्रतिनिधि पात्र हैं जो अपने व्यक्तित्व,कार्य- कलाप से पाठकों के चेहरे पर जितनी मुस्कान चस्पा करता है उससे कहीं ज्यादा करुणा उपजाता है. दद्दा,घासी, पंडित, टोंटी, मासूम मिश्रा, टिल्लू पहाड़ी समाज के ऐसे पात्र हैं जो अपनी हीन बोधता से निजात पाने और जड़ो से जुड़े रहने की बेहतर कोशिश करते हैं.

ये पात्र अपने संवादों और कृत्यों से पाठकों के चेहरे पर कभी हंसी,विद्रूपता और कभी गहन करुणा के भाव प्रतिलक्षित कराते हैं. कुछ प्रसंग समसामयिक होने से प्रभावी हैं, जैसे अन्ना आंदोलन और पात्रों का चिन्तन, फिर गुरुवर को था धता बता कर दिल्ली की राजनीति में नये दल का उदय, घासी का नायाब चिन्तन , बहस( “गुरु के ऊपर भारी पड़ना ही 21वीं सदी राजनीतिक बदलाव है”) इस पर लिखा पूरा प्रंसग प्रभावशाली है.

इस उपन्यास की लगभग सभी स्त्री पात्र (नव्या,सुमित्रा,गार्गी,मोना,मेघा) बेहद व्यवहारिक और चालाक महसूस होती हैं. ऐसे में स्वाभाविक रुप से पाठक के मन में प्रश्न उठता है कि क्या स्त्रियां अपना स्वाभाविक गुण खो रही हैं, या लेखक उनके चरित्र के प्रति न्याय करने में पूर्वाग्रही रहे? इसका उत्तर तो लेखक स्वंय ही देगें.

अन्त आते- आते कोरोना काल की भयावहता, पात्रों का भय, लेखक का भय पाठकों को स्वाभाविक रूप से जोड़ लेता है. अपना, अपनों के जीवन, जीविका के भय को पाठक भी गहनता के साथ महसूस करता है, और अतं में घासी की हंसी के साथ पाठक गहरी सांस लेता है,और सूकून महसूस करता है. आप इस उपन्यास को अमेजॉन और फ्लिप्कार्ट से खरीद सकते हैं.

अगर आप भी इस पुस्तक को पढ़ना चाहते हैं और आप को भी शौक है किताबें पढ़ने का तो अपने किताबों के संग्रह में ललित फुलारा जी की किताब “घासी – लाल कैंपस का भगवाधारी” को भी जगह दें। ये एक जीवित किताब है जिसका एक एक शब्द नए समाज को दर्शा रहा है। आप को कुछ पल अपने ऐसी किताबों को जरुर देना चाहियें जो आप को नयी सोच प्रदान कर सकती है।