गिलास कब तक पकड़े रखेंगे? – कहानी

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गिलास कब तक पकड़े रखेंगे? - कहानी

कहानियाँ कई तरह की होती है कुछ नई तो कुछ सदियों पुरानी। कुछ जानवरों, पेड़-पौधों और वस्तुओं एवं घटनाओं के बारे में तो कुछ पूरी तरह से इंसानों पर केंद्रित। पर एक चीज़ जो इन सारी कहानियों में समान रूप से मिलती है वह है कहानी को पढ़ने वाले के भीतर रूचि जगाना। आज हम आपके लिए ऐसी ही एक कहानी लेकर आए हैं जो आपको रोचक तो लगेगी ही साथ ही यह आपको चीजों को कुछ ऐसे नजरियों से देखने का मौका भी देगी जिन नजरियों से हम-तुम आम जीवन में उन्हें नहीं देख पाते हैं। तो देर किस बात की? चलिए शुरू करते हैं.

एक बार एक कक्षा में एक प्रोफेसर और कुछ विद्यार्थी बैठे होते हैं। हर रोज प्रोफेसर विद्यार्थियों के आने पर उनसे उनके हाल चाल जानते, बातचीत करते, आपका दिन शुभ हो इस प्रकार से उनका अभिवादन करते और फिर पढ़ाना शुरू करते। पर आज तो मानो सूरज ही पश्चिम से ऊगा हो। सब विद्यार्थी कक्षा में आ रहे थे पर मजाल है जो प्रोफेसर ने आज किसी से एक भी शब्द कहा हो। कक्षा का नजारा सभी के लिए अटपटा था। प्रोफेसर चुपचाप अपने हाथ में केवल एक पानी का गिलास लेकर चुपचाप खड़े थे।

खैर सभी विद्यार्थी कक्षा में आ चुके थे और अब समय था प्रोफेसर की कक्षा शुरू होने का। प्रोफेसर ने पानी का गिलास साइड में रख दिया और फिर सभी का अभिवादन भी करा। विद्यार्थियों ने भी उनसे बातचीत करी। फिर बात करते-करते ही अचानक प्रोफेसर उस ग्लास के पास फिर से गए और पानी से भरे उस ग्लास को उठा लिया। फिर उन्होंने उस ग्लास को थोड़ा ऊपर उठाते हुए सभी विद्यार्थी उसे देख सकें इस उद्देश्य से सभी विद्यार्थियों का ध्यान उस ग्लास की तरफ खींचा।

फिर उन्होंने सभी विद्यार्थियों से पूछा कि आपको क्या लगता है इस पानी से भरे ग्लास में कितना वजन हो सकता है?

पचास ग्राम, सौ ग्राम, डेढ़ सौ ग्राम, दो सौ ग्राम इस प्रकार विद्यार्थी अपने अलग-अलग अनुमान प्रोफेसर के साथ साझा करने लगे।

प्रोफेसर ने कहा कि, “ज़ब तक इसका वजन न किया जाए तब तक इसका असल वजन तो पता नहीं ही चल सकता। पर मेरा प्रश्न असल में यह नहीं कुछ और है। जिस प्रश्न तक मैं आपको अभी लेकर जाऊंगा।”

फिर प्रोफेसर कहते हैं, “मेरा असल प्रश्न यह है कि यह जो गिलास है। यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर के लिए ऐसे ही पकड़ कर बस खड़ा रहूँ जैसा कि मैं थोड़ी देर पहले भी खड़ा था। तो ऐसा करने से मेरे साथ क्या होगा?”

विद्यार्थियों ने कहा कि, “कुछ भी नहीं होगा प्रोफेसर”

फिर प्रोफेसर ने कहा, ” क्या होगा यदि मैं अगले एक-दो घंटे के लिए इसी तरह ग्लास को बिना कहीं रखे, बिना इसे कहीं छोड़े बस ऐसे ही पकड़कर रखूँ ?

विद्यार्थी सोचने लगे। फिर एक छात्र ने कहा, “सर आपके हाथ में दर्द हो सकता है। एक घंटे पकड़ा तो थोड़ा दर्द। दो घंटे तक पकड़ा तो उससे भी ज्यादा दर्द।

प्रोफेसर ज़रा मुस्कुराये और कहा, “तुम ठीक कह रहे हो। अच्छा, अगर मैं इस ग्लास को पूरे दिन के लिए ऐसे ही उठाकर रखूँ तो क्या होगा?”

फिर एक छात्र ने थोड़ा सोचते हुए कहा कि,

“आपके हाथ के सुन्न होने कि संभावना बहुत ज्यादा है। आपका हाथ सुन्न पड़ सकता है। इसके अलावा यह आपकी मांसपेशियों में भी तनाव पैदा कर सकता है, यदि ज़्यादा देर तक ऐसा रहा तो लकवा भी हो सकता है। निश्चित रूप से आपको हॉस्पिटल जाना पड़ सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि फिर दोबारा खुद से पानी का ग्लास न उठा पाएं। “

यह सुनकर सभी छात्र हँस पड़े।

प्रोफेसर भी मुस्कुराते बोले, ” बिल्कुल सही… इसका मतलब जितनी देर पकड़े रखेंगे उतनी ही ज्यादा समस्या हो सकती है। लेकिन मुझे यह बताओं कि क्या इस पूरी प्रक्रिया में यानि कि थोड़ी देर से लेकर पूरे दिन तक ग्लास पकड़ने की गतिविधि में किसी भी दौरान गिलास का वजन बदला? क्या वजन घटा-बढ़ा या ज्यादा हुआ?

रिस्पांस मिला, “नहीं, बिल्कुल नहीं।”

प्रोफेसर ने पूछा, “फिर भला ऐसा क्यों हुआ कि पूरा दिन पकड़े रखो तो दर्द होगा और मांसपेशियों में तनाव भी। यहाँ तक कि हॉस्पिटल जाने, लकवा मारने और गिलास दोबारा कभी न उठा पाने तक की नौबत आप सकती है। क्यों?”

सभी विद्यार्थी असमंजस में पड़ गए। सब प्रोफेसर का चेहरा देख रहे थे। प्रोफेसर ने कहा कि, “अच्छा, गिलास को पकड़ा रखा जाए तो दर्द और ज्यादा देर तक पकड़े रखूँ तो और भी भयानक परिणाम हो सकते हैं…पर यह जो दर्द मुझे इस गिलास को पकड़े रखने से होगा। अगर मैं चाहता हूँ कि मुझे यह दर्द न हो। तो मुझे क्या करना चाहिए?”

विद्यार्थी बोले, “आप उस गिलास को कब तक पकड़े रखेंगे और आपने क्यों पकड़ा हुआ है? गिलास थोड़ी देर यानि कि ज़ब तक आपको उससे पानी पीने की जरूरत है तब तक उठाना ठीक है। ज़ब जरूरत नहीं है आप तुरंत उस गिलास को नीचे रख दीजिए। दर्द अपने आप ही बंद हो जाएगा।”

“शाबाश” प्रोफेसर ने जवाब दिया। फिर उन्होंने कहा कि हमारे जीवन की जो अलग-अलग समस्याएं हैं। किसी का घर-परिवार तो किसी के दोस्त या प्रियजन ने उनसे जो शब्द कहे वह समस्या। तो कहीं बीते हुए कल में घटी घटनाएँ। जीवन की हर एक समस्या इस पानी के गिलास जैसी ही है, बिल्कुल ऐसी ही ।

इन समस्याओं को आप थोड़े समय के लिए अपने दिमाग़ में रखेंगे, इनके बारे में सोचेंगे तो आपको यह इतनी महसूस नहीं होंगी। जैसा कि, गिलास को थोड़ी देर पकड़ा रखा जाए तो कुछ नहीं होगा ठीक वैसे ही। वहीं आप इन समस्याओं के बारे में थोड़ी ज्यादा देर तक सोचेंगे उन्हें पकड़ कर बैठे रहेंगे तो आपको दर्द होगा। और थोड़ी देर तो और ज़्यादा दर्द। और अगर काफी देर तक पकड़ा रखा जाए तो आप इनके कारण ढेर सारे दर्द के शिकार हो जाएंगे। ऐसा दर्द जो फिर आपको कुछ भी न करने दे और लकवे जैसा ही ग्रसित कर दे।

जीवन की विभिन्न समस्याओं के बारे में सोचना जरूरी है पर उतनी ही देर जितना जरूरी है। और फिर उन्हें नीचे रख देना चाहिए अर्थात उनके बारे में सोचना रोक देना चाहिए। इससे न केवल आप हल्का-फुल्का महसूस करेंगे बल्कि एक अच्छी नींद, अच्छी सेहत और अच्छा जीवन भी पाएंगे।