Home व्रत कथाएँ Somvar Vrat Katha | सोमवार व्रत कथा, व्रत पूजन की विधि और...

Somvar Vrat Katha | सोमवार व्रत कथा, व्रत पूजन की विधि और आरती

0
Somvar Vrat Katha

Somvar Vrat Katha आप सभी के लिए आज हम ले कर आये है और आप को हमें बताने में भी बहुत ख़ुशी हो रही है की हमारे ब्लॉग gkidea के माध्यम से पुण्ये कर्म हम कर रहे हैं। जो लोग भगवान शिव, कालों के काल महाकाल, शिव शम्भू, महेश, महादेव, नीलकंठ, शंकर, गंगाधर, रूद्र, विश्वनाथ, भोलेनाथ, शम्भू, त्रिलोचन, चंद्रशेखर, गिरीश, पशुपति, गौरीनाथ की पूजा अर्चना करना चाहते है हमे ख़ुशी है हम उन सभी के लिए आज Somvar Vrat Katha ले कर आ रहें है सभी भक्तों को हमारा नमस्कार। Somvar Vrat Katha ऐसी कथा है जिसके सुमिरन मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

शिव शम्भू, महेश, महादेव, नीलकंठ, शंकर इतने भोले हैं बो अपने भक्तों की सभी परेशानियों को दूर करते है। जो भी भक्त somvar vrat katha के बारे में जानकारी चाहता है आप हमारी इस पोस्ट को उनके साथ whatsapp पर जरूर साझा करें। चलिए अब हम आप को somvar vrat katha के बारे में जानकारी प्रदान करते है। दोस्तों व्रत कथा के साथ ही हम आप को व्रत की विधि, आरती भी इस पोस्ट में ले कर आये है।

सोमवार व्रत की विधि –

Somvar Vrat Katha से पहले हम आप को सोमवार व्रत की विधि बता रहे हैं और आप को सही और सटीक विधि हम बता रहे है। आप अगर आप हमारी बताई हुई इस विधि से सोमवार व्रत करते है तो आप का व्रत सफल होगा ऐसी हम आशा रखते है।

सोमवार व्रत की विधि नारद पुराण के अनुसार बताई गयी है की जो भी व्यक्ति सोमवार का व्रत रखना चाहता है उसको सोमवार के दिन प्रातः उठ कर नित्ये कर्म कर स्नान कर लेना चाहियें और शिव जी के मंदिर में जल और बेल पत्र चढ़ा कर अपने घर आना चाहियें और फिर घर पर पूजन करना चाहियें व्रत कथा को सुनना चाहियें। सोमवार के व्रत में सिर्फ एक समय भोजन किया जाता था है और भी सिर्फ शाम के समय। सोमवार का व्रत दिन के तीसरे प्रहर तक होता है। शाम को भोजन करने से पहले पूजन, दीप, धूप से शिव परिवार की पूजा अर्चना कर, शिव जी की मंगल आरती करने के बाद ही व्रत को खोलना चाहियें।

Note – Somvar Vrat Katha की कृपा असीम है और इसलिए हम आप को इस व्रत को करने की एक बहुत खास बात बता रहे है जो ज्यादातर लोगो को नहीं पता होती है। सोमवार के दिन अगर आप बेल पत्र शिव जी पर चढ़ाते हैं तो आप को याद रखना चाहियें बेल पत्र को सोमवार के दिन पेड़ से नहीं तोडना चाहियें। आप को बेल पत्र को एक दिन पहले ही दोपहर १२ बजे से पहले ही बेल पत्र को पेड़ से तोड़ लेना है और एक साफ़ कपडे में लपेट कर पूजा वाली जगह रखना है और अगले दिन सोमवार के दिन उन बेल पत्र को अच्छी तरह साफ़ कर गंगा जल से धो कर शिव जी पर चढ़ाये आप की सभी मन की इच्छाएं पूरी होंगी। अगर आप सोमवार के दिन ही बेल पत्र को पेड़ से तोड़ कर चढ़ाते है तो आप का सोमवार का व्रत पूर्ण नहीं माना जाएगा और आप को आप के व्रत का फल नहीं मिलेगा।

इसे भी पढ़ें

Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) –

Somvar Vrat Katha अब हम आप को बता रहे हैं बैसे तो सोमवार व्रत की बहुत सारी कथाये प्रचलित है लेकिन सबसे ज्यादा जो प्रचलित है हम आप बही कथा सुना रहे है। Somvar Vrat Katha शुरु करते है।

बहुत समय पहले की बात है एक बहुत ही धनवान साहूकार एक नगर में रहता था और साहूकार शिव की रोज पूजा अर्चना करता था। साहूकार हर सोमवार शिव जी का व्रत रखता, शिव मंदिर जाता, बेल पत्र चढ़ाता, व्रत कथा करता और बहुत ज्यादा दान धर्म करता। लेकिन ये सब करने के बाद भी साहूकार बहुत परेशान रहता। साहूकार की परेशानी की बजह उसके परिवार में कोई भी संतान नहीं थी। साहूकार एक संतान की इच्छा अपने मन में रख शिव भक्ति में लगा हुआ था।

एक बार शिव जी और माता पार्वती वायुमंडल से गुजर रहे थे अचानक माता पार्वती की नजर उस साहूकार पर पड़ी साहूकार शिव जी की पूजा अर्चना कर रहा था लेकिन बहुत उदास लग रहा था। तभी माता पार्वती ने शिव जी से कहा की ये आप का भक्त बहुत परेशान है आप इस पर कृपा करें। शिव जी ने पार्वती जी से कहा की जो व्यक्ति इस दुनिया में आया है उसको उसके कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। लेकिन माता पार्वती का मन बहुत विचलित हो रहा था और वह जिद करने लगी। तभी शिव जी ने कहा अच्छा ठीक है में साहूकार की एक संतान की इच्छा को पूरा करता हूँ। लेकिन ये संतान जैसे ही १२ बर्ष की आयु पूरी करेगी इसकी मृत्यु हो जायेगी।

साहूकार शिव जी और माता पार्वती के बीच की बार्तालाप सुन रहा था और इसलिए साहूकार न ही दुखी था और न ही खुश था।

बरदान के अनुसार साहूकार को एक संतान हुई लेकिन साहूकार उसी तरह शिव जी की भक्ति करता रहा। जब बह बालक ग्यारह बर्ष का हुआ साहूकार ने उस बालक को शिक्षित करने के लिए काशी भेजने की योजना बनायीं और बालक के मामा को बुलाया। लड़के के मामा को बहुत सारा धन दे कर कहा की जहा भी तुम दोनों लोग रोक जाओ बहा पर ब्राह्मणो को भोजन करना, दान करना, ब्राह्मणो को दक्षिणा देते हुए आगे की और प्रस्थान करना।

जैसा साहूकार ने बोला बैसा ही करते हुए बालक और मामा काशी नगर की ओर जा रहे थे तभी एक नगर में दोनों लोग रुके बहा पर उस राज्य के राजा की लड़की का विवाह हो रहा था। लेकिन जिस लड़के से उस लड़की का विवाह हो रहा था बो लड़का एक आँख से काना था। जो लड़का काना था उसके पिता की नजर साहूकार के लड़के पर पड़ी उसने एक चाल चली, उसके सोचा शादी इस लड़के से करवा कर इसको कुछ धन दे कर विदा कर दूंगा और अपने लड़के के साथ राजकुमारी को ले चला जाऊँगा।

लेकिन साहूकार का लड़का भी बहुत ही अच्छी सोच वाला था उसके ये बात लड़की के साड़ी के पल्लू पर लिख दी। बालक ने लिखा की तुम्हारा विवहा तो मेरे साथ हो रहा है लेकिन तुम्हारी विदाई किसी और के साथ होगी, में काशी पढ़ाई करने के लिए जा रहा हूँ।

ये सभी बातें उस कन्या ने अपना माता पिता को बताई। शादी हुई लेकिन राजा ने विदाई नहीं की और बारात को बापस कर दिया। साहूकार का लड़का काशी चला गया।

काशी पहुंचते ही बहा पर यज्ञ करने की तैयारी करने लगे लेकिन लड़के के बारह बर्ष की आयु पूरी हो चुकी थी और शिव की बरदान के अनुशार उस बालक की मत्यु निश्चित थी। बालक ने अपने मामा से कहा उसकी तबियत कुछ सही नहीं है मामा ने बालक से कहा तुम जा कर आराम कर लो कुछ देर सो जाओ। बालक जैसे ही आराम करने गया कुछ देर में उसके प्राण निकल गए।

मृत बालक को देख उसके मामा ने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया और सयोंगवश उसकी समय शिव जी और माता पार्वती उसी तरफ से जा रहे थे। माता पार्वती ने देखा कोई बहुत तेजी से विलाप कर रहा था।

पार्वती जी ने शिव जी से कहा की हे महादेव इस व्यक्ति के विलाप की ध्वनि मुझे बहुत परेशान कर रही है। आप इसकी मदद करिएँ। शिव जी उस बालक के समीप गए और उन्होंने देखा की ये बही साहूकार का बालक है जिसकी मृत्यु १२ बर्ष की आयु में होनी थी।

माता पारवती ने भोलेनाथ से कहा की हे भोलेनाथ जब इसके माता पिता को पता चलेगा बेचारे बे भी अपने प्राण त्याग देंगे। माता पार्वती के आग्रह के बाद शिव जी के उस बालक को जीवित किया और लम्बी आयु का बरदान भी दिया।

अब बालक अपनी दीक्षा ले कर अपने नगर की तरफ को चल दिया बीच में बही नगर पड़ा जहा पर उस बालक की शादी हुयी थी उस राजा ने उस बालक का स्वागत किया और अपनी बेटी को उस बालक के साथ विदा किया उधर साहूकार और उसकी पत्नी दोनों अन्य त्याग पर बैठे हुए अपने बालक की खबर का इन्तजार कर रहे थे और उन दोनों ने प्रण लिया था की अगर बालक की मृत्यु की सूचना आती है तो बे भी अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन बालक बहु ले कर सही सलामत घर आ गया। उसी रात शिव जी साहूकार के सपने में आये और साहूकार से कहा की उसके पुत्र को लम्बी आयु का बरदान दिया है अब बहुत पूरा जीवन जीवित रहेगा।

मृत बालक को देख उसके मामा ने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया और सयोंगवश उसकी समय शिव जी और माता पार्वती उसी तरफ से जा रहे थे। माता पार्वती ने देखा कोई बहुत तेजी से विलाप कर रहा था। पार्वती जी ने शिव जी से कहा की हे महादेव इस व्यक्ति के विलाप की ध्वनि मुझे बहुत परेशान कर रही है। आप इसकी मदद करिएँ। शिव जी उस बालक के समीप गए और उन्होंने देखा की ये बही साहूकार का बालक है जिसकी मृत्यु १२ बर्ष की आयु में होनी थी। माता पारवती ने भोलेनाथ से कहा की हे भोलेनाथ जब इसके माता पिता को पता चलेगा बेचारे बे भी अपने प्राण त्याग देंगे। माता पार्वती के आग्रह के बाद शिव जी के उस बालक को जीवित किया और लम्बी आयु का बरदान भी दिया।

अब बालक अपनी दीक्षा ले कर अपने नगर की तरफ को चल दिया बीच में बही नगर पड़ा जहा पर उस बालक की शादी हुयी थी उस राजा ने उस बालक का स्वागत किया और अपनी बेटी को उस बालक के साथ विदा किया उधर साहूकार और उसकी पत्नी दोनों अन्य त्याग पर बैठे हुए अपने बालक की खबर का इन्तजार कर रहे थे और उन दोनों ने प्रण लिया था की अगर बालक की मृत्यु की सूचना आती है तो बे भी अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन बालक बहु ले कर सही सलामत घर आ गया।

उसी रात शिव जी साहूकार के सपने में आये और साहूकार से कहा की – हे साहूकार मैंने तुम्हारी पूजा अर्चना से प्रसंन होकर उसके पुत्र को लम्बी आयु का बरदान दिया है अब बहुत पूरा जीवन जीवित रहेगा।

इस प्रकार जो कोई भी इस कथा को सुनता है, पढ़ता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। सभी दुःख दूर होते है घर में लक्ष्मी जी का आगमन होता है।

Somvar Vrat Katha आरती –

Somvar Vrat Katha करने के बाद आरती भी किया जाना बहुत जरुरी है। हम आप के लिए शिव जी की आरती भी बता रहे है। आप देसी घी के दिए जला कर ये आरती करें।

Somvar Vrat Katha आरती
Exit mobile version